Volume 5 of 5.Hindi translation of Pictorial Mahabharata.Translated by Swami Videhatmananda
‘सचि। महाभारत के इस पांचवें भाग के साथ ही इस प्राचीन महागाथा का उपसंहार हो जाता है। इस भाग में हम ग्यारह महत्त्वपूर्ण पर्वो का संक्षेप में दिग्दर्शन कराने जा रहे हैं। इसमें कर्ण तथा शल्य के जीवन का अन्त होता है। भीष्म पितामह अपनी दोनों भयंकर प्रतिज्ञाओ को पूरी करते हैं। इसके बाद वे शरशय्या पर लेटे हुए सूर्य की उत्तरायण गति की प्रतीक्षा करते है। इस दौरान वे युधिष्ठिर को धर्म तथा राजनीति को शिक्षा भो देते हैं। युधिष्ठिर अनिच्छापूर्वक ही राजमुकुट धारण करते है और युद्ध के दौरान हुई हिसा के प्रायश्चित के रूप में अश्वमेध यज्ञ का अनुष्ठान करते हैं। धृतराष्ट्र, गान्धारी, कुन्ती और विदुर सदा के लिये तपोवन में चले जाते हैं। श्रीकृष्ण अभिमन्यु के पुत्र परीक्षित की रक्षा करते हैं, अपने सम्पूर्ण कुल का नाश देखते हैं और स्वयं वैकुण्ठ के लिये प्रस्थान करते हैं। छत्तीस वर्षों तक मलाभांति राज्य का सुशासन करने के बाद पाण्डव लोग भी स्वर्गलोक की लम्बी यात्रा पर निकल पड़ते हैं।
सत्ता एवं महत्त्वाकांक्षा के तरह-तरह के उतार-चढ़ावों के बीच से आगे बढ़ती हुई यह महागाथा आखिरकार यही सिद्ध करती है कि अन्तिम विजय धर्म तथा सत्य की ही होती है।
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