Volume 4 of 5.Hindi translation of Pictorial Mahabharata.Translated by Swami Videhatmananda
‘सचित्र महाभारत’ के इस चौथे भाग में प्राचीन काल में हुए सुप्रसिद्ध महायुद्ध का रोमांचकारी विवरण प्रस्तुत किया गया है। परन्तु यह आधुनिक काल के युद्धों से भिन्न था, क्योंकि इस युग के युद्धों में हिंसा, करता, छल आदि की कोई सीमा नहीं रहता। महाभारत का युद्ध कुरुक्षेत्र में हआ. जिसे धर्म का क्षेत्र कहते हैं। उन दिनों सारे युद्ध कठोर नैतिक नियमों के आधार पर ही लड़े जाते थे। प्रतिदिन शंखनाद के साथ युद्ध की शुरुआत होती थी और सूर्यास्त के समय उसे बन्द कर दिया जाता था। हम यह भी देखते है कि रात के समय पाण्डव लोग चर्चा के लिये कौरवों के शिविर में भी जाते थे।
युद्ध के पहले दस दिन भीष्म पितामह कौरव-सेना के प्रधान सेनापति थे। उन्होंने पाण्डव-सेना का काफी विध्वंस किया। बाद में द्रोण को सेनापत्ति बनाया गया और उन्होंने भी अपनी रणनीतिक कुशलता का अच्छा परिचय दिया। इसीलिये इस भाग के दो पर्वो को ‘भीष्म पर्न’ तथा ‘द्रोण पर्व’ कहा गया है।
युद्ध प्रारम्भ होने के थोड़ी देर पहले ही श्रीकृष्ण ने अर्जुन को अपना वह प्रसिद्ध उपदेश दिया, जिसे ‘भगवद्-गीता’ कहते है। महाभारत का यह अंश सनातन धर्म की एक अद्भुत तथा जीवन्त व्याख्या प्रस्तुत करता है।
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