स्वामी आत्मानन्द जी की ईशावास्योपनिषद् व्याख्यासहित नामक नयी पुस्तक पाठकों के सम्मुख रखते हुए हमें बड़ी प्रसन्नता हो रही है। स्वामी विवेकानन्द जी ने उपनिषद्-मन्य ‘उत्तिष्ठत जाप्रत प्राप्य वरान्निबोधत’ का सम्पूर्ण देश में प्रचार कर सुषुप्त भारत को पुन: जापत करने का महान कार्य सम्पत्र किया। उन्होंने कहा ‘उठो, जागो और लक्ष्य प्राप्ति तक रुको मत।’ उपनिषद् हमारी आत्मशक्ति, आत्मगौरव को जाग्रत करते हैं। इसके मन्त्र हममें शक्ति का संचार करते हैं। ये हमारी प्रेरणाशक्ति है। ये हमारे स्वरूप का स्मरण कराते है और स्वस्वरूप की अनुभूति में सहायता करते हैं।
उपनिषदों में ईशावास्योपनिषद् का अपना एक विशिष्ट स्थान है। रामकृष्ण संघ के वरिष्ठ संन्यासी और रामकृष्ण मिशन, रायपुर के संस्थापक-सचिव ब्रह्मलीन स्वामी आत्मानन्दजी महाराज कर्मयोगी के साथ-साथ उच्च कोटि के वक्ता और चिन्तक थे। उन्होंने प्रसिद्ध उद्योगपति स्वर्गीय बसन्त कुमार बिरला और श्रीमती सरलाबेन विरला जी के हार्दिक निमन्त्रण पर कोलकाता के संगीत कला भवन में ईशावास्योपनिषद् पर उत्कृष्ट व्याख्यान दिया था। परवर्ती काल में उसे ही सम्पादित कर ‘विवेक ज्योति’ के सम्पादक स्वामी प्रपत्त्यानन्द ने जनवरी, २०१८ से जून, २०१९ तक उस पत्रिका में प्रकाशित किया। पाठकों में इसकी लोकप्रियता को देखते हुए इसका पुस्तकाकार प्रकाशन किया जा रहा है। यह पुस्तक पाठकों को ईश्वर-पथ अग्रसर करने और ईश्वरानुभूति कराने में सहायक होगी,यही शुभकामना और ईश्वर से प्रार्थना करते हैं।
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