This book is in Hindi language published by Ramakrishna Math,Nagpur.
स्वामी विरजानन्दजी महाराज रामकृष्ण मठ और रामकृष्ण मिशन के छठवें परमाध्यक्ष थे। इसके पूर्व वे १९३४-३८ तक इन संगठनों के महासचिव के दायित्व को भी सम्पन्न किया था। श्री माँ सारदा देवी से मन्त्रदीक्षा लेने के उपरान्त वे उन चार शिष्यों में से एक थे जिनको स्वयं स्वामी विवेकानन्द ने संन्यास दीक्षा प्रदान की थी। १९०६-१९१३ तक वे अद्वैत आश्रम के अध्यक्ष तथा प्रबुद्ध भारत अंग्रेजी मासिक के सम्पादक भी रहे थे। स्वामी विवेकानन्द के ‘कम्प्लीट वर्क्स’ तथा ‘लाइफ ऑफ स्वामी विवेकानन्द – प्राच्य और पाश्चात्य शिष्यों द्वारा’ का संकलन और सम्पादन स्वामी विरजानन्दजी महाराज के चिरस्मरणीय कार्य हैं। उनकी पुस्तक ‘परमार्थ प्रसंग’ साधक समुदाय में बहुत लोकप्रिय हुई है। ‘Strive to Attain God’ पुस्तक के अध्याय १२ और १३ को वर्तमान पुस्तिका में स्वामी विरजानन्दजी महाराज के दो व्याख्यानों का हिन्दी अनुवाद प्रस्तुत किया गया। अनुवाद के साथ के यत्किचित् सम्पादन भी किया गया है।
पहला व्याख्यान २५ नवम्बर १९३९ को मुम्बई नगर के नागरिक अभिनन्दन के प्रत्युत्तर के रूप में दिया गया था तथा दूसरा व्याख्यान १९४५ में रामकृष्ण मिशन की वार्षिक बैठक में संन्यासियों के बीच में दिया गया था। दोनों ही व्याख्यानों में राष्ट्रीय और अन्तराष्ट्रीय सन्दर्भो में रामकृष्ण संघ के योगदान तथा भावी भूमिका पर प्रकाश डाला गया है। दोनों ही व्याख्यानों में भारत की चिर शाश्वत और नित नूतन संस्कृति पर तथा युगावतार श्रीरामकृष्ण तथा युगाचार्य स्वामी विवेकानन्द के स्पर्श से वह किस प्रकार पुनरुज्जीवित होकर वह लोक कल्याणार्थ सक्रिय है, पर प्रकाश डाला गया है। इस सामग्री का ‘रामकृष्ण-विवेकानन्द भावधारा तथा आधुनिक विश्व सन्दर्भ’ शीर्षक से प्रकाशित किया जा रहा है।
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